Monday, February 3, 2014

क्या आप दमा-साँस-अस्थमा के रोगी हैं?

मौसम बदलने से, धूल से, धुयें से, किसी चीज की एलर्जी से, हमें दमा-साँस-फैफड़े की बीमारी होती है। डाक्टर इलाज के साथ बचाव की सलाह देते हैं परन्तु क्या दी जाने वाली एन्टीबॉयटिक, ऑक्सीजन, नेबुलाइजेशन या बदलते मौसम में सर्दी से, गर्मी से, बरसात से, धूल से, धुयें से बचाव करके भी हम फैफड़े दमा-साँस की बीमारियाँ से बच पाते हैं? शायद नहीं।

एक बार अस्थमा की बीमारी प्रारम्भ होने की देर होती है कि फिर यह बीमारी कई बार जीवन भर तक पीछा नहीं छोड़ती। हद तो तब हो जाती है जब कई बार बच्चे की पैदाइश के कुछ ही दिनों बाद यह शिकायत होती है और फिर उस नन्ही जान को भीषण परेशानियों से गुजरना पड़ता है।

क्या बीमारियाँ पूर्वनिर्धारित होती हैं?
या 
क्या बीमारियों के बारे में कुण्डली देखकर पता लगाया जा सकता है? 

हर व्यक्ति का अलग मत हो सकता है परन्तु -

लाल किताब में बीमारियों के बारे में स्पष्ट यह बताया गया है कि किस ग्रह से संबंधित कौन सी बीमारी होती है और कौन सा ग्रह किसी दूसरे ग्रह से पीडि़त हो तो क्या बीमारी हो सकती है।

लाल किताब के अनुसार फेफड़े-दमा-साँस-अस्थमा की बीमारी बृहस्पति से संबंधित होती है और जन्म कुण्डली में बृहस्पति के उसके शत्रु ग्रह बुध/राहु से पीडि़त होने पर अक्सर यह बीमारियाँ होती हैं।


अपने अनुभव के आधार पर इन रोगों से पीडि़त कई मरीजों को मैंने बिना उनकी कुण्डली देखे जब लाल किताब के आसान उपाय बताये तो मैंने आश्चर्यजनक रूप से उनको ऐसा लाभ होते देखा जो उनको वर्षों से इलाज कराने पर भी नहीं हुआ था।

विगत दिनों एक मशहूर हस्ती को मैंने इस बीमारी से पीडि़त देखा और यह सुना कि तमाम इलाज कराने के बाद भी उनकी यह बीमारी दूर नहीं हो रही है तो मैंने उनकी कुण्डली देखी। आश्चर्यजनक रूप से उस कुण्डली में बृहस्पति और बुध एक ही घर में हैं तथा बृहस्पति बुध से पीडि़त है साथ ही सूर्य और शुक्र भी मिल रहे हैं जो इस बीमारी को बढ़ाते हैं।
तो क्या वास्तव में बीमारियाँ पूर्व निर्धारित होती हैं?

यदि आपको भी ऐसी किसी बीमारी ने परेशान कर रखा है तो कृपया अपनी कुण्डली देखें और यदि कुण्डली में बृहस्पति/बुध/राहु एक ही घर में हों या किसी भी तरह मिल रहे हों तो कृपया अपने अनुभव अवश्य बतायें।

Monday, September 12, 2011

लाल किताब उपाय: विश्वास करें अंधविश्वास न करें


जब हम गैवी मायाजाल में फंसते हैं तो विश्वास तो हमें करना ही पड़ता है। जब हम देखते हैं कि हम उच्च शिक्षित हैं, अनुभवी हैं, योग्य हैं परंतु हमें अपने से कहीं कम शिक्षित या अशिक्षित गैर अनुभवी और अयोग्य व्यक्तियों के यहां नौकरी करनी पडती है, जब हम देखते हैं कि घोड़ों को घास तक उपलब्ध नहीं होती और गधे च्यवनप्राश खा रहे होते हैं। हमारे आसपास जगह जगह ऐसे नजारे देखने को मिल जाते हैं जहां हंस दाना चुग रहे हैं और कौवे मोती खा रहे होते हैं।

और जब ऐसा होता है तो हमारे मुख से एक ही बात निकलती है कि सब किस्मत का खेल है। भाग्य की लीला है, ग्रहों का चक्कर है।

क्या वास्तव में ग्रहों का असर मानव जीवन पर होता है ?

यह ऐसा प्रश्न है जिस पर सदियों से बहस होती आई है और शायद हमेशा होती रहेगी। एक वर्ग उपरोक्त परिस्थितियों में परेशान व्यक्ति से हमेशा एक ही बात कहता है कि किस्मत,भाग्य जैसी कोई चीज नहीं होती। ये सब नाकारा व्यक्तियों की बातें हैं। इस वर्ग के बारे में मैंने पहले ही अपने एक लेख में यह स्पष्ट किया था कि ये भी अनोखी प्राकृतिक लीला है कि जिनको ईश्वर ने अच्छी तकदीर दी होती है, जिनकी कुण्डली बहुत अच्छी होती है, जिन को ईश्वर ने बिना मेहनत के ही सब कुछ दिया होता है वही ईश्वर के प्रति अधिक नाशुक्रा होता है।

परन्तु ऐसे व्यक्ति भी जब बुरे ग्रहों के समयचक्र में फंसते हैं तो उनके मुख से भी अंत में यही निकलता है कि सब ग्रहों का खेल है।

क्यों होता है ऐसा ?

जब एक सफल राजनेता अपने पद और प्रतिष्ठा को खत्म करके जेल में जीवन बिता रहा होता है ?

इसका साधारण जवाब ये होता है कि बुरे कर्म किये उसका खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा।

परन्तु बुरे कर्म किये ही क्यों जो जेल जाना पड़ा। जो व्यक्ति अपनी मेहनत, लगन से इतना ऊपर उठता है क्या उसमें इतनी अक्ल नहीं होती कि उसे ये न मालूम हो कि बुरे कार्यों का नतीजा बुरा ही होता है और उसकी जिंदगी भर की कमाई गई इज्जत मिट्टी में मिल सकती है।

पता होता है परन्तु फिर भी वो करता है और शायद इसी को ग्रह का खेल कहते हैं।

कुछ लोग उच्च शिक्षित होकर दर दर की ठोकरें खा रहे होते हैं तो कुछ अनपढ होकर भी ऐश करते हैं। कुछ किराये के मकान में सुखी रह रहे होते हैं परन्तु अपने बनाये हुये मकान में रहना प्रारम्भ करते ही बरबाद हो जाते हैं। किसी की पत्नी, किसी का पति उसके परिवार के लिये काल बनकर आते हैं तो किसी का विवाह होते ीवह तरक्की की सीढियां चढने लगता है। किसी का जीवन निरपराध होते हुये भी कोर्ट कचहरी, जेल में बीत जाता है तो कोई अस्पतालों में चक्कर खा रहा होता है परन्तु बीमारी पकड में नहीं आती।

इन सब समस्याओं का समाधान हमें लाल किताब में आसानी से मिल जाता है और शायद इतने कम समय में लाल किताब की इतनी अधिक लोकप्रियता के पीछे भी यही कारण है। साथ ही सिर्फ लाल किताब ही ऐसी किताब है जिसमें हमें अपनी समस्याओं के समाधान के लिये आसान उपाय बताये गये हैं और उपाय भी ऐसे जो हमें हमारे नैतिक मूल्यों को याद दिलाते हैं।

अगर:

माता पिता की सेवा करने से हमारे बुरे ग्रह अच्छे होते हैं

बुजुर्गों के पैर छूने से, कन्याओं को मिठाई बांटने से हमारे ग्रह अच्छे होते हैं

चाचा, ताया, भाई, रिश्तेदार, मित्रों से सम्बन्ध अच्छे बनाने से हमारे ग्रह अच्छे होते हैं

चिड़ियों को, जानवरों को, चींटियों को, दाना रोटी खिलाने से हमारे ग्रह अच्छे होते हैं

मजदूरों से, साफ सफाई कर्मचारियों से, अंधों से विकलांगों से अच्छा व्यवहार करने से तथा उनकी सहायता करने से हमारे ग्रह अच्छे होते हैं

विधवा बहन, भाभी की सेवा करने से हमारे ग्रह अच्छे होते हैं

पत्नी से, पति से सम्बन्ध मधुर बनाने से हमारे ग्रह अच्छे होते हैं

घर में साफ सफाई रखने, बैड की चादर स्वच्छ रखने से, दांतों की सफाई, नाक की सफाई रखने से, कपडे सुगंधित तथा साफ पहनने से हमारे ग्रह अच्छे होते हैं

नशा, शराब, मांस, मछली, अनाचार, दुराचार, छोडने से हमारे ग्रह अच्छे होते हैं

तो

ऐसी किताब और उसके उपायों को आजमाने में मेरे ख्याल से कोई हर्ज नहीं है भले ही फिर हम इन पर विश्वास न करते हों

परन्तु ध्यान रखें:

असली लाल किताब से बिलकुल अलग बाजार में तरह तरह की लाल किताबें मौजूद हैं। हर शहर में और कई टीवी चैनल्स के जरिये कथित लाल किताब विशेषज्ञ अपनी दुकानदारी चला रहे हैं उनसे सावधान रहें। वे लोग लाल किताब में लिखी जानकारी को तो तोड मरोडकर पेश करते ही हैं साथ ही उपायों में भी अपने उपाय अपनी दुकानदारी की जरूरतों के लिहाज से जोड देते हैं।

एक विशेषज्ञ ने कुण्डली में चन्द्र ग्रहण के उपाय एक व्यक्ति को बताये और उसकी सामग्री को इतना अधिक बता दिया कि उसका खर्च दो हजार रूपये से अधिक का हो गया। जबकि असली लाल किताब में सिर्फ इतना कहा गया है कि चन्द्र के शत्रु ग्रहों की वस्तुओं को पानी में बहाना है मात्रा का जिक्र उसमें नहीं है। ऐसे विशेषज्ञों से मेरा कहना मात्र इतना है कि पहले से ही परेशान किसी व्यक्ति को वास्तविक उपाय बताये ंतो क्या हर्ज है। जो कार्य दस रूपये में हो सकता है उसके लिये दो हजार रूपये खर्च क्यों करवाये जायें।